रविवार, 15 जनवरी 2012

शुक्रवार वार्षिकी में प्रकाशित मेरा व्यंग्य



सपने देखना हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है । उसमें भी भारतीयों पर तो यह बात कुछ ज्यादा ही कारगर ढंग से लागू होती है । उनका अधिकांश जीवन स्वप्नजीवी के रूप में ही कटता है । वे स्वप्न पालते हैं , स्वप्न खरीदते हैं और स्वप्न बेचते भी हैं । यूं तो पूरे विश्व में उदारीकरण और भूमंडलीकरण की जब से हवा चली है सपनों का कारोबार बड़े पैमाने पर फला-फूला है । जिसे जहां अवसर मिल रहा है अपने सपनों का व्यापार चमका रहा है । सपनों में नए-नए रंग और टुटके भर रहा है ।  एक अच्छे स्वप्न विक्रेता होने के लिए आपको सपनों की मनोवैज्ञानिक समझ होनी चाहिए । सिर्फ सपने बेचने से काम नही चलेगा बल्कि आपको उन क्षेत्रों और खरीददारों की भी मानसिक स्थिति भी समझनी पड़ेगी जो कि आपके सपनों को हाथों-हाथ लपके लें । बल्कि यूं कहें कि सीधे गटक लें ..बिन सोचे , बिना समझे । हमारे देश की जनता की सपनों में गहरी आस्था एवं विश्वास है । अन्यथा इतने विश्वासघातों और हादसों के बाद कोई दूसरे देश की जनता होती तो सड़कों पर उतर आती ।
                               लेकिन हम हैं कि एक के बाद एक सपनों की मीठी गोली खाए जा रहे हैं अबोध बच्चों की तरह । हम लोग कमजोर जीवट वाले लोग नही हैं । हमारा मनोबल जितना मजबूत है , आत्मा उतनी ही चीकट है । एक से बढ़कर एक स्वप्नद्रष्टा आए इस देश में । उनके पास नायाब नुस्खे थे , चमत्कारिक व्यक्तित्व था , जादुई भाषा थी और लुभावने नारे थे । कोई चौराहे पर भंडाफोड़ करने का दावा करता था तो कोई शाब्दिक लफ्फाजी से समां बांध देता था । कोई धोखेबाज था तो कोई घोटालेबाज । लेकिन देखिए हमारा हौंसला हमने सपनों में हमारा विश्वास नही डगमगाया । किसी ने कहा गणेशजी दूध पी रहे हैं तो हमने उसको भी उतना मान दिया और किसी ने कहा सतयुग आएगा तो हमने उस पर भी विश्वास व्यक्त किया । हम पूरी श्रद्धा और गर्व के साथ अपनी हरी-भरी छाती पर परमाणु रिएक्टर रूपी बम भी बांधने को तैयार हैं और खेत उजाड़ कर विकास के नाम पर फोरलेन और फ्लाई ओवर के साथ उड़ान भरने को तैयार हैं । यहां तक कि कोई कौन बनेगा करोड़पति में हमें हॉट सीट पर बैठा दे तो हम आजन्म चुप रहने को भी सहर्ष तैयार हो जाएंगे । सवाल बस यही है कि कौन कितना हमें मुगालते में रख सकता है ।
                             हम ठहरे भोले-भाले लोग । चमत्कारों में हमें गहरा यकीन है । जाति और धर्म हमारी कमजोरी है । भ्रष्टाचार हमारे खून में हीमोग्लोबिन सा शुमार है । आलस और हरामखोरी हमारे दो हाथ हैं जो कि अधिकतर बंधे रहते हैं । भाई भतीजावाद और क्षेत्रवाद हमारी बैसाखी हैं जिनके बिना हम दो कदम भी नही चल सकते हैं । स्वार्थपरता का जाला हमारी आंखों पर चढ़ा ही रहता है । ऐसे में हम भला क्या देखें , क्या समझें । हम वही समझ रहे हैं जो हमे दिखाया जा रहा है । अश्लील मनोरंजन , फूहड़ता , सनसनी , धन की महत्ता । साहित्य होरी और हल्कू नही रच रहा । कविताएं शब्द पहेली होती जा रही हैं । व्यंग्य टू मिनट मैगी सा हो गया है और कहानी वायवीय संसार की यात्रा भर रह गयी है । ऐसे में आम आदमी के सपनों का हरण सबसे ज्यादा हुआ है । उसे उनकी सत्ता यात्राओं के रथों में हांके जाने के बाद थके हुए घोड़ों की तरह अस्तबल में छोड़ दिया जाता है । महंगाई का चाबुक उसे सीधे चलने नहीं देता और मालिक की लोभी नजर उसे रूकने नही देती । उसे बस चलते जाना है , बस चलते जाना ...। कपड़े , तेल ,पाउडर , शैम्पू , जीवन बीमा तक सब बिक रहा है । बस समर्थ खरीददार चाहिए ।
                             लालीपाप से मोहक बच्चों से लेकर , छरहरी युवतियों तक सब आपको बुला रहे हैं बस आइए तो सही ..एक बार । करीना को देखकर जी करता है खरीद लूं ढेर सारे लेपटाप । देखो तो कितने मनुहार से बेच रहा तेंदुलकर सीमेन्ट । कल मिल गए ऐसें ही एक सपनों के होलसेल डीलर । कहने लगे – सपने बेचने का मौसम इस देश में साल भर बना रहता है । मैंने पूछा – वो कैसे ? तो चहकते हुए समझाने लगे – अरे भाईसाहब , इतना बड़ा देश है , इतनी विविधताएं हैं , इतने मुद्दे हैं , इतने चुनाव होते रहते हैं ...इतनी विषमताएं हैं कि सपनों की खपत आसानी से हो जाती है । हां , चुनाव के दिनों में तो हम एक्सपायरी माल भी निकाल देते हैं ... सड़ा, गला सब खप जाता है । अब देखिए गरीबी हटाओ का सपना सन 71 से अब तक थोड़ा बहुत फ्लेवर बदल कर बिक रहा है । ऐसे ही युवाओं को रोजगार का सपना भी हॉट केक की तरह हर चुनाव के पूर्व अच्छा व्यापार करता है । कौन सी पार्टी कौन सा सपना पसंद करती है इस पर हमारी रिसर्च टीम लगातार काम करती रहती है । हम उनकी पसंद और जरूरतो का पूर ध्यान रखने की कोशिश करते हैं । फिर उसे पार्टी की डिंमांड के अनुसार हरा , केसरिया या तिरंगा रंग दे कर प्रस्तुत कर देते है । मतलब ग्रेवी तो एक सी रहती है ...हां अंदर का मेटेरियल थोड़ा सा बदल जाता है । क्षेत्र विशेष की मांग के अनुरूप
उसमें कुछ तड़का उत्तर भारतीयों का या साम्प्रदायिकता या विशेष दर्जे की मांग का डाल देते हैं। मैंने अपनी जिज्ञासा को उनके विराट अनुभव के समक्ष झिझक के साथ परोसते हुए पूछा – कुछ नए प्रयोगों या अपने नए प्रोडक्टों के बारे में बताइए न ? ...जैसे थ्री जी सपने वगैरह । वे हंसे और थोड़ा रूककर बोले – देखिए हम सपनों में भी सोशल नेटवर्किंग का प्रयोग करने जा रहे हैं। हमारा प्रयास है कि हम अन्ना और केजरीवाल जैसे लोगों को भी अपने सपनों से जोड़े । इससे हमारे सपनों की ब्रांड वैल्यू बढ़ेगी । मसलन – खरीदें 24 कैरेट खरा सोना बिलकुल अन्ना की तरह शुद्ध और चमकदार । या फिर ... ये लीजिए केजरीवाल सा स्ट्रांग बैटरी वाला पॉवर इन्वर्टर। न थके , न रूके बस चलता ही जाए ... चलता ही जाए । अब बताइए इससे उपभोक्ता का उत्पादों के प्रति विश्वास बढ़ेगा कि नहीं ? बाजार की नजर अभी इन महानुभावों पर जानी शेष है । फिर देखिएगा कमाल । बाजार तो अजगर ठहरा सबको लीलता है एक दिन ...हीं,हीं ।
                                 वह देर तक हंसते रहे । पता नही अपनी कल्पनाओं पर या हमारी मूर्खताओं पर । थोड़ा संयत हो कर कहने लगे – हमारे देश में तो हर साइज और डिजाइन का सपना उपलब्ध है साहब । हम तो उसके ब्लाक और जिले स्तर पर एजेन्ट नियुक्त करने की सोच रहे हैं । हमारा दावा है कि आप निराश नही होंगे । साठ साल का हमारा सपने बेचने का एक्सपीरियन्स है जनाब । आज तक किसी ने शिकायत नही की । न ही कोई सपना कभी वापिस आया । हमारे सपनों की खासियत ही यह है कि सामने वाले को समझ ही नही आ पाता कि वो सपने देख रहा है या हकीकत । जब तक उसे होश आता है हम अगला सपना लांच कर चुके होते हैं वो बेचारा उनकी भूल भुलैय्या में उलझ जाता है ।
                            यूं तो पक्की सड़क , चौबीसों घण्टे पानी-बिजली भी इस देश में एक खूबसूरत सपना ही है जिसे हम बरसों से बेच कर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं । मैंने कहा – इसका मतलब हम सपनों के उत्पादन के क्षेत्र में तो निर्यात की स्थिति में हैं ? वे हंसते हुए कहने लगे – नहीं साहब , उनके सपने अलग हैं , हमारे सपने अलग । उनके यहां जो अधिकार है वो हमारे यहां स्वप्न है । फिलहाल तो हम उनके रिजेक्टेड सपनों की झूठन से ही अपनी दुनिया आबाद कर खुश हो रहे हैं । और जब तक कोई खुश है वो नया सपना क्यों देखेगा ...। वो ये आप्तवचन कह कर अन्तर्ध्यान हो गए , मैं आज तक उन स्वप्नद्रष्टा को ढूंढ रहा हूं            

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