शनिवार, 1 दिसंबर 2007

नन्हें हाथों के शहर में

गुब्बारों से खेलने की उम्र में
गुब्बारे बेचते हैं वे
चुस्की खाने की उम्र में
खिलाते हैं चुस्कियाँ
गोया स्‍वप्‍नों से खेलने की उम्र में
बेचते हों स्‍वप्‍न नन्‍हे हाथों से
किसी फुटपाथ के किनारे
धोते हुए कप प्लेट
उन्हें नही आयी शर्म
उन्हें हमेशा
अपनी भूखी माँ
खांसते पिता का ख्याल ही आया

तुम्हारी गालियां

हिकारत भरी नज़र
सब की सब डिगा न सकीं उन्हें
एक अंतहीन युद्ध के
छोटे से सिपाही की तरह
बिना मूठ की तलवार से लड़ रहे हैं वे
जखमी हाथों से तुम्हें सोंप सुविधाएं
अद्रश्य होते रहेंगे वे यूं ही

वे नही जानतेतुम्हारे शब्दों के अर्थ
आदेशों , से सर्वथा अनभिग्य
धुआं उगलती
चिमनियों की राख में
बनता - बिगड़ता रहेगा उनका चेहरा
वाहनों के कलपुर्जों के शोर में
दम तोड़ती रहेगी हँसी
कुछ भी कहें तुम्हारे आँकड़े
घोषणाएँ कुछ भी बताएँ
तय है उनका बचपनकोई भी नहीं लोटा सकेगा उसे
कोई भी नहीं................

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें