जब कभी लौटता हूँ
यादों के शहर
चुपचाप खड़े दिखते हैं
मुझे मेरे दोस्त
समय की तेज़ धूप में
झुलस गए हैं उनके चेहरे
मुस्कान यथावत है
कड़वे अनुभवों से
अछूती है उनकी भाषा
सफलताओं से असम्प्रक्त उनकी चाल
छोटी होती दुनिया में
सिकुड़ा नहीं है उनका सोच
गिरवी आत्माओं के शहर में
बेखौफ ही रह है उनका अंदाज़
भले ही नहीं लिखते
वे मुझे ख़त
न देता हूँ मैं जवाब
वर्षों से नहीं पता है
पता - ठिकाना
परन्तु बदस्तूर आते हैं वो
अतीत की राहों से
लगाते हैं कहकहे
फिर घंटों मंत्रणाएं
कुछ भी नहीं बदला है
इतने बरसों में
न उनकी आस्था
न उनकी कल्पनाएँ
आज भी उनकी आंखों में
है हरा जंगल
आज भी उसमें
पानी ढूँढते हैं वे
आज भी उनसे बिछुड़ने के बाद
ढूँढता हूँ मैं
अँधेरे में कोई हाथ
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