गुरुवार, 6 दिसंबर 2007

परमाणु करार पर कुछ इजहार

संसद पर परमाणु करार
पर तीखी नोंक झोंक सुन
गरीब गंगू घबराया
उसको यह मसला कतई समझ नहीं आया
यह कैसी खींचातानी है ?
यह कैसी तकरार है ?
यह किसका भविष्य है जो रखा जा रहा उधार है ?
प्रश्नों की झड़ी देख मास्टरजी ने समझाया
"तू पचड़ों में मत फँस यह बड़े लोगों का मामला है
उनका मनोरंजन है
तेरे पास तो न ऊर्जा है ,न धन है
तेरे पास तो एक अदद भोला भाला मन है "
और यहाँ मन का कुछ काम नहीं है
यह तो एक -दो-तीन की रेस है
जिसमें अमरीका को देना दाम नहीं है
भागेंगे तो हम ,हाफेंगे तो हम
गंगू तेरी कसम बड़ा मज़ा आएगा
जीते कोई भी क्रेडिट अंकल ही ले जाएगा
और देखना सब का इंकार एक दिन इजहार में बदल जाएगा

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