बुधवार, 26 दिसंबर 2007

यहाँ सब चलता है (व्यंग्य )

जय -जयकार का समय है यह । भाजपा अभिभूत है ,कांग्रेस भस्मीभूत । उधर चिल्ला रहे हैं सहयोगी अवधूत । -"काहे चाला एकला ?...हमका भी साथ लेलेत तो तोहार यह दुर्गत तो ना हौत् । " पर का करी पालती में चाटुकारिता का पुराना रोग है । इन्द्रा इज इंडिया वाला रोग । जब शरीर कमज़ोर होत है तब छोटन मोटन बीमारी भी ज़ोर पकड़ लेत है । बांग्लादेश भी आँख दिखावत है । मौका देख लाल सियार भी गुर्राए ,और बिहारी बाबू भी । मैय्या बिचारी परेशान । कहाँ जाई ?का करी ?सत्ताभोगी पाल्टी का आदत नहीं है विरोध का । अन्तः पुर के आदी मरुथल में चलने के अभ्यासी नहीं हैं बचुवा । अपने भाईसाहब मंत्रमुग्ध हैं इन दिनों कल मिल गए बोले -"मैं तो कह रहा हूँ ,कि गुजरात वाला फार्मूला पूरे देश में लगा दें तो पाल्टी चमक जाये । "मैंने कहा -"भाईसाहब ,पूरा देश गुजरात नहीं है! और हर जगह आप पर भी संकट मोचक कहाँ ?हर जगह गोधरा कहाँ ?" भाईसाहब अचकचाए,बोले - "बात तो ठीक है , लेकिन स्टैंड तो लेना ही पड़ेगा ना !" मैंने कहा - "राजनीति में आजकल स्टैंड नहीं स्टंट चलता है ,फिर वह दो रुपए वाला क्रॉस चिन्ह का स्टंट हो या चक दे गुजरात का स्टंट । या राजकुमार का रोड शो वाला स्टंट । जब भोली -भाली जनता एंग्री यंगमैन की पुजारी है तो तीस साल बाद लोग एंग्री ओल्ड मेन के पुजारी नही हो सकते हैं ?"
जनता दीवार ,शोले पर बलिहारी है तो तीसरी कसम क्यों ?गंभीर सवालों पर आँख हमारी नम क्यों ?इसलिए पहनाओ पुष्प -हार ,करो जय -जयकार । चाहे नंदीग्राम हो या गोधरा नर -संहार । फर्क क्या पड़ता है ?राजनीति में सब चलता है ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें