शनिवार, 5 जनवरी 2008

इन दिनों आप(व्यंग्य कविता)

इन दिनों आप
आप नहीं हैं आप !
आप तो हो रहे हैं सबके बाप
उंगलियाँ घी में हैं सिर कढाई में
खुद शिखर पर दूसरे खाई में
जो जी आया लिखते हैं
रेवड़ियों से बिकते हैं
सत्ता गलियारों में आपकी धूम है
कहते हैं -"लेखन में इन दिनों बूम है
चट कर जाते हैं सुविधाएं चुपचाप
दूसरों से कहते हैं -"कटोरी का साइज़ नाप "
आपकी महिमा का चहुँ ओर गुण गान है
वक्त सही हो तो गधा भी पहलवान है
आप भी अवसर की देहरी के चतुर पुजारी हैं
सूजा हैं ,धागा हैं ,टाट हैं ,आरी हैं
गल न पाए दाल जो रायता ढुला देंगे
लाभ के मग में मर्यादा भुला देंगे
हो गए सारे बाहुबली फ्लॉप
जुगाड़ुओं की दौड़ में आप हैं टॉप
इन दिनों आप .....
आप नहीं हैं आप !
आप तो हो रहे हैं सबके बाप ॥

!-- B










3 टिप्‍पणियां:

  1. चट कर जाते हैं सुविधाएं चुपचाप
    दूसरों से कहते हैं -"कटोरी का साइज़ नाप "
    अतुल जी
    क्या बात है...वाह वाह... भाई...बहुत धारदार व्यंग रचना है... बस कमाल है.
    नीरज

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  2. चट कर जाते हैं सुविधाएं चुपचाप
    दूसरों से कहते हैं -"कटोरी का साइज़ नाप "
    आपकी महिमा का चहुँ ओर गुण गान है
    वक्त सही हो तो गधा भी पहलवान है
    भाई वाह अतुल जी बहुत धारदार पैने व्यंग वाली रचना है आप की ...बहुत बढ़िया...वाह.
    नीरज

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  3. अतुल जी, टिप्पणी पर टिप्पणी न कहिए. दरअसल सर्दी में ठिठुरते बच्चों पर कविता पढ़कर मन अशांत हो गया था सो उस वक्त उठ गए थे और फिर भूल गए कि कहाँ पढ़ी आज आपके ब्लॉग का नाम पढ़ते ही याद आ गया. इस कविता का व्यंग्य तो खूब है लेकिन वह कविता सीधे दिल को छू गई थी.

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