रविवार, 14 दिसंबर 2008
हूक दा मामला है ! (व्यंग्य )
हूक का मामला बड़ा विचित्र है । जब उठती है तो ससुरी काबू में नही रहती है । बूढे भी ८२ साल की उमरिया में सत्ता की चाशनी में अपनी कामरिया गीली करने को तत्पर हो जातें हैं । शीशराम ओला को देख कर तो ऐसा ही लगा । उधर बिगडे नवाब सी पी जोशी साहेब भी कुर्सी की जुगत में हाथ पैर मार रहे थे । कबीर ने ठीक ही कहा है कि- "माया महा ठगनी "। माया के कारन अपना पराया हो जाता है । कामना अमर्यादित आचरण करने लगती है । हारा हुआ नेता भी मुख्यमंत्री पद का स्वप्न देखने लगता है । तो कोई कोई कपड़े फाड़ने के अंदाज़ में राणे शैली में विलाप ,प्रलाप आदि करने लगता है । सच में ऐसे में सत्ता लोलुप व्यक्ति की मुख मुद्रा अत्यन्त मनमोहक लगती है । उसके चेहरे पर लालच ,ईर्ष्या , दर्प के निशान आते -जाते हैं जिसे वह नही पढ़ पाता है । हूक कब भूख में बदल कर चीख पुकार में बदल जाती है पता ही नही चल पाता है । अलग -अलग तरह की हूक के अलग -अलग परिणाम और प्रभाव होते हैं । किसी से सुख मिलता है तो किसी से दुःख तो किसी से इन्सान त्रिशंकु सा अधर झूल में लटक आजीवन उपहास का पात्र बन इतिहास में दर्ज हो जाता है । क्या आप भी किसी हूक के शिकार हैं तो तुंरत त्याग दीजिए वरना लौट के बुद्धू घर आयें तो हमें न कहियेगा ?
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बूढे भी ८२ साल की उमरिया में सत्ता की चाशनी में अपनी कामरिया गीली करने को तत्पर हो जातें हैं
जवाब देंहटाएंbahut khub
सुंदर पाठ है।
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