शुक्रवार, 12 मार्च 2010

अनाजों की किटी पार्टी से सीधा प्रसारण ( अहा जिंदगी के मार्च अंक में प्रकाशित व्यंग्य )

इस बार की किटी पार्टी मूंग की दाल के घर थी । सुबह से ही वो तैयारियों में लगी हुयी थी । तरह-तरह के पकवान बन रहे थे । मूंग की दाल की पकौड़ी, मूंग की दाल का हलवा ,मूंग की बर्फी आदि । मूंग का मानना था कि ऐसा करके वो अन्य सहेलियों की छाती पर मूंग दल पाएगी । किटी पार्टी का समय नजदीक आ रहा था । एक-एक कर के मेहमान आने शुरु हो गए थे । सबसे पहले उड़द आयी । संजी-संवरी जीन्स, टी-शर्ट पहने। महंगा परफ्यूम लगाए । फिर चने की दाल आयी । सादा चिकन सलवार सूट में । उसके चेहरे पर कुछ चिंता की लकीरें स्पष्ट दिख रहीं थीं । किसी ने उसका कोई खास नोटिस नहीं लिया । एक कोने में बैठी दूसरों की बातों में खींसे निपोरती रही । सब बेसब्री से हाट केक अरहर की प्रतीक्षा कर रहे थे । लेकिन उसका कोई अता-पता नहीं चल रहा था । किसी ने कहा कि अरहर को तो आज किसी फूड फेस्टिवल का उदघाटन करना है शायद थोड़ा लेट आएगी । मसूर की दाल ने नाक-भौं सिकोड़ते हुए कहा आजकल तो उसकी हर तरफ मांग है , क्या पता आए भी या नहीं ? सबने सहमति में सिर हिलाया । सरसों बोली- अरहर के भी क्या दिन फिरें हैं बहनों । इसे कहते हैं कि जब ऊपर वाला देता है तो छप्पर फाड़ के देता है । उसी समय एक शानदार विदेशी कार आ कर रुकी । ड्राइवर ने आगे बढ़ के दरवाजा खोला । अरहर उसमें से उतर रही थी । अरहर की वेशभूषा देख सब चकित हो गए थे । कल तक फटी धोती में घूमने वाली अऱहर का तो मानों लुक ही बदल गया था । स्लीव लेस टॉपर और शाट्स में वो बहुत स्मार्ट लग रही थी । गले में हीरे का हार चमक मार रहा था ।

चने की दाल ने कोहनी मारते हुए मसूर से कहा देखो , मुई की क्या किस्मत पलटी है । शिष्टाचारवश सबने एक-दूसरे से हाय-हलो की । एक ने कहा हाय बहना, कितनी क्यूट लग रही हो । दूसरी बोली –“ आजकल हर तरफ तेरा ही जलवा है , सब तुम्हें देख-देखकर ठंडी आहें भर रहे हैं । तुम्हें घर लाना तो दूर छू कर ही कृतार्थ हो रहे हैं । अरहर ये ठिठोली सुन कर लजा गयी । सकुचाते हुए बोली क्या करुं ,मैं तो लाख चाहती हूं कि हर गरीब की थाली तक पहुंचने की कोशिश करती हूं लेकिन ये बिचौलिए मानें तब न । इस बीच लजीज व्यंजन आते जा रहे थे । जिससे सब का ध्यान रह रह कर बंट रहा था । चाय पत्ती ने नीरसता तोड़ने के लिए पार्टी गेम का प्रस्ताव रखा जिसे सबने सहर्ष स्वीकार कर लिया ।

प्लेट में से काजू उठाते हुए अलसी बोली लेकिन हमें गरीबों का भी ध्यान तो रखना चाहिए न । उड़द ने तुरंत कटाक्ष किया –“ तू खुद से ही इसकी शुरुआत कर न , जानवरों के चारे में माटी मोल मिलने वाली आज अस्सी रुपए किलो बिक रही है ।...कुछ डॉक्टरों ने सिफारिश क्या कर दी , इतराने लगी । अलसी को काफी बुरा लगा। वो प्रतिवाद करते हुए चिल्लायी- अपने गिरेबां में झांक...कचौरी, मंगोड़ी तक में ढूंढने पर भी दिखायी नहीं देती और चली दूसरों को उलाहना देने । बहस चल ही रही थी कि सरसों ने नैतिकता का प्रश्न उठाते हुए कहा क्या हम अमीरों के मुंह के निवाले ही बने रहेंगे । आखिर कब तक हमें कृषि मंत्री के बयानों की कठपुतली बन कर रहना पड़ेगा? उसी क्षण वहां चीनी ने धमाकेदार एंट्री की । सब उसके आस-पास जुट गए । चीनी की व्यस्तता तो देखते ही बनती थी । बार-बार उसका मोबाइल बज रहा था । वायदा कारोबारी उसकी नाक में दम किए हुए थे । तभी उसके पीए ने कान में कुछ फुसफुसाया। चीनी सबको सुनाते हुए बोली –“ हां,हां भाई डायबिटीज फोरम वालों को सुबह दस बजे का समय ओके कर दो । मसूर ने चुटकी लेते हुए पूछा –“ मिस शुगर , आप ने तो कर दी है अच्छे अच्छों की हालत पु्अर ।

चीनी ने दुपट्टा कंधे पर डालते हुए प्रोफेशनल अंदाज मे जवाब दिया यू नो, आजकल चीनी कम ही ठीक रहती है । क्योंकि भारत में वैसे भी डायबिटीज के रोगी तेजी से बढ़ रहे हैं। चने की दाल ने टोकते हुए कहा –“ लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि इससे कितनी कड़वाहट बढ़ रही है घर के बजट में । –“कड़वाहट कहां नही है ? परिवार में , दफ्तर में , राजनीति में , खेल में । सब तरफ कड़वापन ही तो पसर रहा है तेजी से ।चीनी ने स्पष्ट किया । तभी किसी ने कहा –“ पहले तो आपको थोड़ा सा पा कर ही इंसान अपना कड़वापन भूल जाता था । भले ही थोड़ी देर को ही सही चीनी ने कंधे उचकाते हुए कहा –“ सॉरी , आई एम हेल्पलेस । सब ऊपर से डिसाइड हो रहा है । मैं तो इस बिसात का एक प्यादा भर हूं बहनों । कुछ दालें दुखी थीं कि आज आम आदमी दाल-रोटी को भी चैन से नहीं खा पा रहा है । दालों के कम सेवन से लोगों के प्रोटीन की कमी हो जाएगी । उनका स्वास्थ्य खराब हो जाएगा । किसी ने कहा इसके लिए किसान भी कम दोषी नहीं हैं । वे हमें क्यों नही उगाते ? जबकि हम तो पक कर तीन महीनों में ही तैयार हो जाती हैं । वे गन्ने की तरफ भाग रहे हैं और डंडे खा रहे हैं। बहस अपने चरम पर थी कि गेंहू वहां पैर पटकता हुआ आया ।

क्रोधित होते हुए बोला –“ माफ करना बहनों मैं बिन बुलाए आ गया ...लेकिन ये बताओ कि ये कौन है जो रोज हमें सेनसेक्स की तरह उछाल रहा है ? केन्द्र राज्यो का नाम लेता है , राज्य व्यापारियों का और व्यापारी कम उत्पादन का रोना रोते हैं । आप लोग अपनी जूतों में दाल बांटने वाली घटिया राजनीति से कम से कम मुझे तो बख्शें । आप लोगों की विलासिता का शिकार मैं नही होना चाहता । मैं तो आज भी मेहनतकश के पेट में पड़ कर उसकी भूख मिटान चाहता हूं । मेरे लिए उस गरीब की संतुष्ट मुस्कान मोनालीसा की मुस्कान से बढ़ कर है। गेंहू के इस वक्तव्य के बाद किटी पार्टी में सन्नाटा छा गया । अनाजों ने तय किया कि भारत के नागरिकों से तो कुछ होगा नहीं। वे ही शीघ्र ही कीमतें बढ़ने के विरोध में वोट क्लब पर धरना देंगे और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे। और स्पष्ट कहेंगे कि उनकी अस्मिता के साथ और खिलवाड़ न किया जाए । उन्हें अमीरों की रखैल बन के रहने की जगह गरीबों की जोरू बन के रहना मंजूर है ।

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