वे बांटते हैं खुशी
या भय
ये तुम जानो
उनके पास है नफरत का बारूद
और वे इस समय सफर में हैं
या मंजिल के करीब
ये किस को है पता
उन्हें नही मिला उचित हक
नही मिली भरपूर हंसी
और पेट भर पानी भी
वे नही हैं खुश अपने आप से
और न महामहिम आप से
आपके भाषणों में अपनी जगह ढूंढते-ढूंढते
थक कर सो गए हैं वे
मानेंगे नही वे आंकड़ों की बाजीगरी से
और कर्ज की पतली चाशनी से
मुरझाए सपनों के फूलों से
वे चल देंगे तो रूकेंगे नहीं
प्रलोभनों के ब्रेकरों से
वे जुनूनी हैं , थोड़े क्रोधी भी
वे क्या करेंगे कल
उखाड़ेंगे परंपराएं
ढहाएंगे अन्याय के पहाड़
या नया अध्याय लिखेंगे
कहां रुकेंगे ये तुम जानो
मैं तो बस इतना जानता हूं
मेरे दोस्त कि मेरा उनका कोई गहरा रिश्ता है
जब भी वे होते हैं बैचेन
मैं नींद से उठ जाता हूं
जब वे होते हैं मायूस
मैं एक ग्रास भी निगल नहीं पाता हूं
वे जब भी हर्षाएं हैं
मैंने झूम-झूम गीत गाए हैं
जबकि न वे मेरे सगे हैं न पराए हैं
क्या जाने किस रिश्ते से वे मेरी मज्जा में घुस आए हैं
उसी में खेले हैं , उसी में नहाए हैं
वो मेरे सोच की संतानें हैं
या मेरी चेतना के पाए हैं
क्या जाने क्या रिश्ता है मेरा उनसे आज भी
सुंदर कविता है. पढ़वाने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंशानदार पोस्ट
जवाब देंहटाएंवो मेरे सोच की संतानें हैं
जवाब देंहटाएंया मेरी चेतना के पाए हैं...
बेहतर कविता...
बढ़िया.
जवाब देंहटाएंnice
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