मंगलवार, 10 अगस्त 2010

राजस्थान पत्रिका के रविवारीय में प्रकाशित कविता 8 अगस्त 10








बँटवारा

बैचेनी हमारे पास है

तो नींद किसके हिस्से में है

आँसू हमारी आँखों में हैं

तो हँसी किसके हिस्से में है

थकान हमारे पैरों में है

तो मनोरंजन किसके हिस्से में है

सदियों से यही प्रश्न पूछ रहे हैं हम

जब दुनिया बदलने की हर चीज

कलम,कूंची,छैनी,हथियार

हमारे पास है

तो समृद्धि किसके हिस्से में है

जिनके पास है इतना सब कुछ

उन्हें इतना सा हिस्सा

जिनके पास नहीं है कुछ भी

उनका इतना सारा हिस्सा

हवाला है न्याय का

लोकतंत्र का

तो ये उपेक्षा,ये सहानुभूति किसके हिस्से में है

हिस्सा बदलो

और बराबर का बाँट लाओ

सावधान

तौलते समय भाग्य की डंडी मत लगाओ

3 टिप्‍पणियां:

  1. हवाला है न्याय का
    लोकतंत्र का
    तो ये उपेक्षा,ये सहानुभूति किसके हिस्से में है.........

    बहुत गंभीर सवाल उठाती कविता। साधुवाद।

    प्रमोद ताम्बट
    भोपाल
    www.vyangya.blog.co.in
    http://vyangyalok.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  2. हिस्सा बदलो
    और बराबर का बाँट लाओ
    सावधान
    तौलते समय भाग्य की डंडी मत लगाओ...

    अतुल भाई...इस बेहतरीन कविता के लिए साधुवाद स्वीकारें...

    जवाब देंहटाएं