संभल कर बोलता है , आगे पीछे सोचता है
जवान लड़की का पिता
उसे पता है
शहर का हाल
शोहदों की चाल
और दूल्हों के भाव
वह महीनों काम चलाता है
फटी बनियान से उधडे जूतों से
बेरंग हुई बुशर्ट से
जवान लड़की का पिता
बेवज़ह बहस में
नहीं फँसना चाहता
अधिकारी से लड़ना नहीं चाहता
वह समभाव से देता है चन्दा
यूनियन के नेताओं
और मोहल्ले के आवारा लड़कों को
चाहता है रूक जाएँ भद्दे गाने
केबल टीवी का प्रसारण
चटपटी ख़बरों का प्रवाह
जवान लड़की का पिता
रोकता है बेटी को बाहर जाने से
उसके पुरुष मित्र घर आने से
घबराता है
उसके लगातार कई दिन तक
खुश दिखने से
सजने से /संवरने से /मुस्कराने से
जवान लड़की का पिता
पेंतालिस में साठ पार लगता है
उसके संदेह अनिष्ट की काली गुफाओं में घूमते हैं
उसके प्रश्न बूढ़े चौकीदार से घूरते हैं
वह रात -रात भर हिसाब लगाता है
अफसोस !कोई नहीं सुनता घर में
जवान लड़की के पिता की
वे सब अपने अनुभव से
दो -चार हाथ करके बड़े होना चाहते हैं
सही कहा भाई !
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता है.
जवाब देंहटाएंजवान लड़की के पिता के दर्द का मार्मिक वर्णन किया है आपने.