शनिवार, 8 दिसंबर 2007

एक टुकड़ा धूप

एक टुकड़ा धूप
काफ़ी है इस जन्म के लिए
ऊष्मित होता रहेगा जीवन
खिलते रहेंगे नव प्रसून
आह्लादित हो कर मन पांखी
करते रहेंगे पर्व स्नान
पर्याप्त है इतना विटामिन देह को
खुशियां भी ज्यादा ठीक नहीं
धूप ऊर्जा नहीं प्राण है
उस अनित्य की मुस्कान है
कितना भटका हूँ
इस निमिष सुख के लिए
एक टुकड़ा धूप के लिए ........................

1 टिप्पणी:

  1. कितना भटका हूँ
    इस निमिष सुख के लिए
    एक टुकड़ा धूप के लिए
    वाह अतुल जी, सुंदर भाव हैं

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