आमिर जब से तुम्हें कल "आज तक " पर सुबह ७ बजे से दूसरे दिन सुबह ४ बजे तक काम करते देखा दिल बाग़ -बाग़ हो गया। काम के प्रति ऐसी लगन ही आदमी को महान बनाती है । कहते हैं की अरस्तू ने भी अपनी जीवन के प्रारम्भिक २१ वर्ष अध्ययन में लगा दिए थे । इन्द्रा गाँधी जी भी ऑफिस में १८ घंटे काम करती थीं । काम के प्रति ऐसी दीवानगी कई लोगों में देखी जाती है । इधर जब से मैंने आमिर को देखा है मेरी भूख -प्यास सब हराम हो गयी है । मैं भी दिन -रात काम निबटाने की सोच रहा हूँ । कई काम पेंडिंग पड़े हैं। कुछ रचनाएँ फ़ाइनल करनी हैं । कुछ किताबें पढ़नी हैं । घर का सौदा लाना है । बच्चों की फ़ीस जमा करनी है । पत्नी को बाज़ार ले जाना है । बॉस ने भी एक -दो कामों की लिस्ट पकड़ा दी है । सब्जी की लिस्ट निकलता हूँ तो बच्चों के काम भूल जाता हूँ । बॉस और पत्नी की नाराजगी तो कोइ मूर्ख ही मोल लेगा । आमिर के चक्कर में अपन घनचक्कर बने जा रहे हैं । न खुदा ही मिल रहा है न विसाले सनम । ब्लड प्रेशर बढ़कर २०० पहुंच गया है । टेंशन की चक्करमें नींद अलग उड़ गयी है । घरवाली भी अब कम जमती है । सोच रहा हूँ कोई दूसरी ले आऊँ । क्या करूं आमिर जो बनना है । अच्छे कलाकार में क्या कमजोरियां नहीं हो सकतीं ?उनकी तरह में बेहतरीन अभिनय और डान्स तो नहीं कर सकता हूँ । न घरवालों से मुँह मोड़ सकता हूँ अलबत्ता पापा का नाम जरूर कर सकता हूँ । आमिर ने रात २ बजे पाव रोटी खाई । मैंने ऐसा किया तो कब्ज़ हो गयी । हे नर पुंगव तुम ऐसा क्या अमृत रस पीते हो ?किस मिट्टी के बने हो ?हम में से हर आदमी यदि इसी प्रकार का प्रयास करे तो आमिर नहीं तो सलमान तो बन जाएगा । उसमें भी बुरा क्या है ?काले हिरन के शिकार के साथ -साथ पब्लिसिटी भी तो मिलेगी । अगर आप कुछ भी नहीं बन पाए तो भी क्या बुरा है । औसत भारतीय आदमी सितारों की शान और शोहरत तो देखता है । लेकिन उनके पीछे का दर्द नहीं जानता है । शैलेन्द्र और दिलीप के पीछे की कहानी कितने लोग जानते हैं ? इसलिए जो भी बनें खुद की औकात देख बनें । वर्ना मेरी तरह चौबेजी बनने के चक्कर में दुबेजी बन कर रह जायेंगे ।
अच्छा व्यंग्य...
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