मंगलवार, 26 अगस्त 2008

कश्मीर को बचाओ !

केन्द्र की तुगलगी नीतिओं से कश्मीर आज सन् ४७ के दौर से गुज़र रहा है । ग़लत और अनुभवहीन राजनीतिक नेतृत्व का परिणाम है काश्मीर की आग । हुर्रियत को सोचना चाहिए की भारत से अलग हो कर उन्हें कुछ नहीं मिलने वाला सिर्फ़ जहालत और आज के भटकते पाकिस्तान की जगह । मनमोहन सिंह को कड़े कदम उठा कर अपने राजनितिक कौशल का परिचय देना चाहिए ताकि सरकार बचाने में ख़राब छवि कुछ सुधर सके । काश्मीर के लोगों को सोच लेना चाहिए की वे स्वतंत्र नही रह पायेंगें । उन्हें या तो पाक हड़प लेगा या चीन ,अमरीका । उनकी किस्मत में यही दासता है इससे बेहतर है की आजाद भारत में खुलकर साँस लें । अलगाववाद के खिलाफ मोर्चा खोलें न की दुम दबा कर बैठें । भगवान अरूधंती राय को सद् बुद्धि दे । अतिरिक्त बुद्धिजीविता भी एक प्रकार का अजीर्ण है । वे लेखन का विरेचन लें ताकि चित्त को शांती हो । अंत में दिनकर की यह पंक्तियाँ ---स्वर में पावक यदि नही ,वृथा वंदन है
वीरता नहीं तो सभी विनय क्रंदन है ।
सिर पर जिसके असिघात चंदन है ,
भ्रामरी उसी का करती अभिनन्दन है ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. kendra ki kamjor sarkar aur kattarwad ki bali chadh raha hai jammu kashmir. uper se desdrohi partiyan , phir chahe vah pdp jaisi politicle party ho ya hurriyat jaisi algavwadi party. bhagwan in sabko sadbuddhi de taki ghati ke log sukoon ki sans le saken.

    जवाब देंहटाएं
  2. सही लिखा है आपने ये देश हम सब का है और उसके साथ ही कश्मीर की खूबसूरत धरती भी हमारी है सिर्फ कश्मीर की नहीं। अलगावाद के डर से ही हमारी निपुसंक सरकारे आज तक चुप बैठी रहीं जिसका परिणाम ये है कि लाल चौक में सरेआम पाकिस्तान समर्थन के नारे लगते हैं पाकिस्तानी झंडे फहराये जाते हैं और किसी का कुछ नहीं बिगडता है। आज जम्मू से जो आवाज उठी है वो सिर्फ जमीन के लिए नहीं है बल्कि उस तुष्टिकरण की नीति के खिलाफ है जो इस देश में अपनाई जाती रही है। ये देश सिर्फ भारतमाता की जय बोलने वाले लोगों का ही हो सकता है किसी पाकिस्तान के समर्थक का नहीं।

    जवाब देंहटाएं