शनिवार, 1 नवंबर 2008
विशम्भर नाथ की स्मृति में
पिछले दिनों प्रसिद्ध आलोचक एवं उपन्यासकार डॉ.विशम्भरनाथ उपाध्याय का जयपुर में निधन हो गया । आज से लगभग १२-१५ वर्ष पूर्व वे मेरे मित्र विजय जोशी के प्रथम कहानी संग्रह खामोश गलियारे के विमोचन समारोह में कोटा आए थे । कार्यक्रम समाप्ति के उपरांत जब हम लोग उनसे मिलने की उत्सुकता के कारण होटल सुरपिन पैलेस पहुंचे तो डॉ जयसिंह नीरज के साथ वो जमे हुए थे । परिचय आदि के उपरांत उनका धारा प्रवाह प्रवचन चलू हो गया । तंत्र विद्या ,नाथों की परम्परा आदि पर वे बोले चले जा रहे थे । अपने प्रसिद्ध उपन्यास "जाग मछन्दर गोरख आया" के कारण उनका विषय पर ज्ञान स्वाभाविक रूप से अधिकारपूर्ण था । घंटों वे उपन्यास के दौरान शोध किए गये अनुभवों को बांटते रहे । उनकी वक्तृता में कायल हो गया । पत्र -पत्रिकाओं में उनकी समीक्षाएं निरंतर प्रकाशित हूते थीं । एक आलोचक के रूप में उनका भाषण उस रोज अदभुत था । कला संबंधी किसी मुद्दे पर उपाध्याय जी की बहस हो गयी जो कुछ देर बाद व्हिस्की के एक जाम लगा लेने के बाद ही रुक पायी थी । सरूर के साथ -साथ उनका लेखक जाग्रत होता गया । एक गंभीर अध्येता , विचारक ,साहित्य मनीषी को हम मंत्र मुग्ध से सुनते रहे । नेपाल से लेकर तिब्बत तक के तंत्र केन्द्रों के इतिहास पर उन्होंने प्रकाश डाला । निश्चय ही उनके निधन से हिन्दी जगत ने एक उदभट आलोचक और उपन्यासकार खो दिया है । उनको मेरी विनम्र श्रधांजलि ।
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उपाध्याय जी को विनीत श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंयह शब्द पु्ष्टि करण हटाएँ।
aap ki is pravishti ko aap ke naam ke sath apne yahoo group HindiBharat (http://in.groups.yahoo.com/group/HINDI-BHARAT/ ) ke sabhi sadasyon ke lie post kar rahi hoon.
जवाब देंहटाएंagrim aabhar.
aap chahein to is samooh se judein, svagat hai.
उपाध्याय जी मेरे परम आदरणीय मित्र थे. उनका ज्ञान सीमाओं में बंधा हुआ नहीं था. मुझे यंग टर्क कहकर ही संबोधित करते. उनके साथ बैठकों का भी आनंद उठाता रहा हूँ. उनकी प्रगतिशीलता नामवर सिंह वाली प्रगतिशीलता नहीं थी. डॉ. रामविलास शर्मा से भी उनके कुछ गहरे सम्बन्ध नहीं थे. हाँ शिवदान सिंह चौहान उन्हें बहुत प्रिय थे.सिद्ध और नाथ साहित्य का उनका गहन अध्ययन था और वे स्वयं भी अपनी कुछ दुर्बलताओं के साथ किसी योगी से कम नहीं थे. आपने उनका स्मरण करके श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर प्रदान किया.
जवाब देंहटाएंडा. उपाध्यायजी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि!
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