रविवार, 2 नवंबर 2008

राज ठाकरे के नाम एक खुला ख़त (कविता)


अबे ओ राज !
मत फैला कोढ़ में खाज
क्षेत्रीयतावाद के चूल्हे पे
वोटों की रोटियाँ पका रहा है
नफरत के जंगल में
एक और विषबेल उगा रहा है
माना कि व्यवस्था गुंडों की रखैल है
शरीफ आदमी के जीवन में
विवशताओं की नकेल है
किससे भिड़े ,किसको दिखाए
हर हथेली में ज़ख्म है
कैसे बोझा उठाए ?
रोशनी गुम है ,रास्ते बंद हैं
संविधान के अनुच्छेदों में
परिवर्तन के पैबंद हैं
मुफलिसी सियासत के द्वार खटखटाती है
कांपते स्वरों में कहाँ क्रांति की बू आती है
गठबंधन है यह अनोखा जनाब
हर उत्पात के पीछे है ,वोटों का हिसाब
बाँट लो देश को ,जितना बाँट सको
चाट लो देश को ,जितना चाट सको
हसरतें अधूरी न रह जाएँ
कुर्सी से कोई दूरी न रह जाए
विभिन्नता में एकता की कहानी खो गई
तरक्की के दौर में , रिश्तों की जवानी खो गई
हर तरफ़ फैला है ,कैसा मंज़र यह दोस्तों
कहीं भाषा , कहीं जाती का खंजर दोस्तों
इन्हें न शर्म है न लाज
अबे, ओ राज !
मत बजा बेसुरा साज

4 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी नसीहत है राज को, उसी की भाषा में।

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  2. महाराष्ट्र या तमाम जगहों पर बिहार के लोगों के साथ जो सुलूक हो रहा है, हो सकता है इससे उन लोगों की आँखें खुले जो सिर्फ़ अपने वोट बैंक की चिंता में घुलते रहते हैं। राज ठाकरे से हिसाब वक़्त लेगा, लेकिन बिहार के नेताओं से भी सवाल होना चाहिए कि गन्दी, जात-पांत की सियासत भूलकर गरीब लोगों के भले की क्यों नहीं सोचते। ऐसा क्यों होता है कि अच्छी पढ़ाई से लेकर अच्छी नौकरी के लिए ही नहीं दो जून की रोटी के लिए भी बिहार के लोगों को दूसरे प्रदेशों का रुख करना पड़ता है? देश में कहीं भी नौकरी करने की बात और है पर परदेस तो परदेस ही होता है। बिहार के लोगों को बिहार में ही महाराष्ट्र, दिल्ली , लुधियाना या जालंधर की तरह ही रोजगार के अवसर क्यों नहीं मिलने चाहिए। किसी ठाकरे को लानत भेजने के साथ हमें लालू, नीतिश, पासवान जैसे नेताओं से सवाल भी करने चाहिए-पिछडों की राजनीति कर्णधार आप लोग बिहार के भले की कब सोचेंगें? कोशिश करें कि मुंबई जैसी स्थितियों का सामना करने को बिहार के किसी व्यक्ति को मजबूर न होना पड़े। राहुल राज की हत्या गम और गुस्से का विषय तो है ही। इसे लेकर बिहार के नेताओं की एकजुटता सराहनीय है। लालू, नीतिश और पासवान की यह एकजुटता बिहार के विकास के लिए भी दिखे तो पूरा राज्य हमेशा के लिए उनका कृतज्ञ रहेगा।

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  3. किसलिए सारे जावानों की जवानी चुप रही
    क्यों हमारी वीरता की हर कहानी चुप रही
    आ गया है वक्त पूछा जाय आख़िर किसलिए
    लोग चीखे , देश रोया , राजधानी चुप रही
    डॉ . उदय 'मणि '

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  4. किसलिए सारे जावानों की जवानी चुप रही
    क्यों हमारी वीरता की हर कहानी चुप रही
    आ गया है वक्त पूछा जाय आख़िर किसलिए
    लोग चीखे , देश रोया , राजधानी चुप रही
    डॉ . उदय 'मणि '

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