व्यंग्य विधा को लेकर कोटा की साहित्यिक संस्था "काव्य -मधुबन " ने एक गोष्ठी का आयोजन किया । इस व्यंग्य गोष्ठी में डॉ.ओंकारनाथ चतुर्वेदी के दसवें व्यंग्य संग्रह "आभार सहित " का लोकार्पण डॉ उषा झा ने किया । उन्होंने कहा की व्यंग्य की विधा अपनाने वाले लेखकों को ईमानदार होना चाहिए । व्यंग्य पीड़ा को शब्द देता है , व्यंग्य जनता का चित्रण करता है । वरिष्ट साहित्यकार महेंद्र नेह का कहना था कीव्यंग्य में जन का पक्ष होना अनिवार्य है । डॉ ओंकारनाथ जी की रचना "चोर जी नमस्कार " को उन्होंने क्लासिक रचना कहा । व्यंग्यकार को समझौतावादी नही विद्रोही होना चाहिए । इस अवसर पर अतुल चतुर्वेदी ,शरद उपाध्याय ,शरद तैलंग ,रामनारायण मीना 'हलधर ' ने अपने -अपने व्यंग्यों का पाठ भी किया । युवा समीक्षक विजय जोशी का कहना था कि व्यंग्य और हास्य में अन्तर होना जरूरी है । सभी व्यंग्य मारक और प्रभावी हैं । गोष्ठी में अशोक हावा ,शिवनंदन शर्मा ने भी रचना पाठ किया । अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि व्यंग्य एक सशक्त विधा है । इस विधा के लेखकों को खतरे उठाने के लिए सावधान रहना पडेगा । व्यंग्य लेखन मज़े के लिए नही सार्थक होना चाहिए ।
कोटा की साहित्यिक गतिविधियों की नेट रिपोर्टिंग का शुभारंभ करने के लिए बधाई। आशा है आप का ब्लाग कोटा की साहित्यिक गतिविधियों की सूचना और रिपोर्टिंग के लिए प्रतिनिधि ब्लाग बने यही कामना है।
जवाब देंहटाएंव्यंग्य लेखन मज़े के लिए नही सार्थक होना चाहिए .
जवाब देंहटाएंbahut padhiya post. vyangayakaro ke vichaar ham sab tak batane ke liye dhanyawaad.
व्यंग्य लेखन मज़े के लिए नही सार्थक होना चाहिए .
जवाब देंहटाएंbahut badhiya post. abhaar.
आभार इस रिपोर्ट का.
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैं। यह लिखना कठिन भी बहुत है।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
सही कह रहे हैं। यह लिखना कठिन भी बहुत है।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
सही कह रहे हैं। यह लिखना कठिन भी बहुत है।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
कब हो गया यह आयोजन। कम से कम कोटा की खबर हम तक तो भिजवा ही देते। क्या खबर देने में भी घाटा होता है। पर कोटा में नहीं होता घाटा है। चाहे मिले न मिले बाटा। चलिए गोष्टी को टाटा।
जवाब देंहटाएंवैसे व्यंग्य का जो अर्थ मैं समझ पाया हूं अभी तक। वो सच्चाई है। यानी सच्चाई का दूसरा नाम व्यंग्य है।
कब हो गया यह आयोजन। कम से कम कोटा की खबर हम तक तो भिजवा ही देते। क्या खबर देने में भी घाटा होता है। पर कोटा में नहीं होता घाटा है। चाहे मिले न मिले बाटा। चलिए गोष्टी को टाटा।
जवाब देंहटाएंवैसे व्यंग्य का जो अर्थ मैं समझ पाया हूं अभी तक। वो सच्चाई है। यानी सच्चाई का दूसरा नाम व्यंग्य है।
कब हो गया यह आयोजन। कम से कम कोटा की खबर हम तक तो भिजवा ही देते। क्या खबर देने में भी घाटा होता है। पर कोटा में नहीं होता घाटा है। चाहे मिले न मिले बाटा। चलिए गोष्टी को टाटा।
जवाब देंहटाएंवैसे व्यंग्य का जो अर्थ मैं समझ पाया हूं अभी तक। वो सच्चाई है। यानी सच्चाई का दूसरा नाम व्यंग्य है।
कब हो गया यह आयोजन। कम से कम कोटा की खबर हम तक तो भिजवा ही देते। क्या खबर देने में भी घाटा होता है। पर कोटा में नहीं होता घाटा है। चाहे मिले न मिले बाटा। चलिए गोष्टी को टाटा।
जवाब देंहटाएंवैसे व्यंग्य का जो अर्थ मैं समझ पाया हूं अभी तक। वो सच्चाई है। यानी सच्चाई का दूसरा नाम व्यंग्य है।