मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

मँहगे चुनाव , सस्ती बयानबाजी

कौन कहता है कि यह आम चुनाव है ? यह चुनाव धन कुबेरों का चुनाव है , बाहुबलियों का चुनाव है और सेलिब्रेटीज का चुनाव है । आम जनता तो मात्र दर्शक है । मुझे इस अवसर पर रघुवीर सहाय की कविता की कुछ पक्तियां याद आ रही हैं , आप भी आनंद उठाएं -

निर्धन जनता का शोषण है

कह कर आप हँसे

लोकतंत्र का अंतिम क्षण है

कह कर आप हँसे

सब के सब हैं भ्रष्टाचारी

कह कर आप हँसे

चारों ओर बड़ी लाचारी

कह कर आप हँसे

वास्तव में यह चुनाव हमारी व्यवस्था को उस दिशा में धकेल रहा है जहाँ एक दिन कार्यकर्ताओं का अभाव हो जाएगा और चुनाव से जनता का मोह भंग जाएगा । इसलिए गंभीरता से विचार की जरूरत है कि चुनाव खर्च पर लगाम लगायी जाए ।

1 टिप्पणी:

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    Kanishka Kashyap

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