नवरात्र चल रहे हैं । हर कोई शक्ति की आराधना में लगा हुआ है । बस शक्ति प्राप्त करने के सबके तरीके अलग-अलग हैं । कोई बाहुबल में विश्वास रखता है तो कोई पगचंपी में । कोई धरने-प्रदर्शन का रास्ता अपनाता है तो कोई षडयंत्रो की सुरंगों को तय करता है । बस किसी तरह शक्ति चाहिए सबको । राजनीतिक निर्वासन भोग रहे हमारे नेताजी इस बार देवी को प्रसन्न करने के लिए विशेष प्रयास कर रहे हैं । नवरात्र काल में विरोधियों पर कोई टिपण्णी नहीं , कोई कॉकटेल पार्टी इस दौरान नहीं । दिन भर पाठ करते हैं , शाम को हवन , रात्रि को किसी भगवती जागरण में शिरकत करते हैं । कल ही एक भगवती जागरण में बोले – “बंधुओं , हमें मंदी और मंहगाई रूपी शुंभ-निशुंभ पर विजय प्राप्त करनी है तब ही ये पृथ्वी रहने लायक रह पाएगी । माँ के मध्यम चरित्र का पाठ कर मध्यम मार्ग को अपनाएं । आतंकवाद के भस्मासुर का नाश भाईचारे के शक्ति बल से ही हो पाएगा । ” जनता नेताजी के भाषण को सुन गदगद हो गयी । नेताजी इस बार बड़ा कमजोर महसूस कर रहे हैं अपने आपको । मंत्रिमंडल में जगह न मिलने से उनका आत्मविश्वास लड़खड़ाया हुआ है । कुछ बोलने से पहले तीन बार सोचते हैं ।
उधर हमारे मोहल्ले के गुप्ता जी भी शक्ति को रिझाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं । आप परिवहन विभाग में ले-खा-कर हैं । किसी को नाराज नहीं करते हैं हाँ , किसी का काम भी नही करते हैं । एक रसीद बुक रखते हैं भगवती जागरण की । जो भी काम कराना चाहे पहले रसीद कटाए । इसमें गुप्ता जी का कोई निजी स्वार्थ नही है ये सब वो माँ की सेवा के लिए कर रहे हैं । गुप्ता जी की साधना कड़ी है नंगे पैर चलते हैं पूरे नवरात्र । इसके बाद प्रति वर्ष दशहरे के दिन एडीडास के नए जूते खरीदते हैं । कहते हैं माँ शक्ति देती है सब।नहीं , नहीं आप गलत समझ गए । अपनी माँ को तो कब का छोड़ चुके । बूढ़े माँ-बाप तो अकेले रहते हैं दूसरी कॉलोनी में । गुप्ता जी अनन्य देवी भक्त हैं । कई धार्मिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं । कहते हैं कि सब ऊपर वाला ताकत देता है । वैसे उनके ऊपर के कार्यालय में आर.टी.ओ. भी बैठता है जिससे उनकी अच्छी सेटिंग है । कहीं उनका इशारा उस तरफ तो नही है । बहरहाल है बड़ा शक्तिशाली आदमी।
अखिल विश्व में शक्ति का पूजन, अर्चन,वंदन चल रहा है । जो शक्तिशाली है उसकी भूख खत्म ही नही हो रही।उसकी जठराग्नि प्रबल है । वे देश के देश निगल रहे हैं । दूसरों के संसाधनों को चबा रहे हैं । हथियारों की प्रतियोगिताएं आयोजित कर रहे हैं । ताकि उनके साजो-सामान बिकें । शक्ति की भूख भला कहाँ मिटती है ? उसके लिए तो किसी पुरुषोत्तम नवीन को ही जन्म लेना पड़ेगा । वरना गली-गली में विचर रहे रावण सीताओं का साँस लेना दूभर कर देंगे । सीताओं ! तुम रोना –धोना छोड़ो । तुम तो शक्ति स्वरूपा हो , कालरात्रि हो । उठाओ ! अपने परुश, पट्टिश , त्रिशूल और पिल पड़ो इन आतताइयों पर।यही है शक्ति का संदेश । हमारे मित्र कौतुक जी भी शक्ति के पुजारी हैं । कई शक्ति पीठों की यात्राएं कर चुके हैं । कई शक्ति पुंगवो के अनुयायी हैं । साहित्य में उनकी शक्ति का रहस्य कई पीठाधीश्वरों की अष्टयाम सेवा और कई संपादकों की निर्मल भक्ति में छिपा है। वे पाठ्यक्रम में भी हैं और अकादमी में भी । पाठक के मन में नहीं हैं तो क्या , इतिहास में तो उनका नाम जुड़ चुका ।
इस कलियुग में भला निर्बल का कौन खेवनहार है । निर्बल की हाय से लौह तो क्या अब कागज तक भस्म नही होता । वरना आंध्र और छत्तीसगढ़ में क्या इतने किसानों की आत्महत्या व्यर्थ जाती । निर्बल तो टट्टू है जिस सब उपदेशों से हाँकना चाहते हैं । ग्लोबल युग में भला उसका क्या काम । एक एल. सी.डी. टीवी खरीद नहीं सकता , लोन पर वाहन उठाते हुए दस बार सोचता है । जब तेरे हाथों में बाजार के उत्पादों को उठाने की शक्ति नहीं है तो तू किस काम का ? ये शक्ति और विजय पर्व तेरे लिए नहीं हैं । जा , अपने डगमग कदमों से घर जा कर आराम कर। पॉवर गेम के युग में क्यों अपनी कराह से हमारा मजा किरकिरा कर रहा है ।
इस कलियुग में भला निर्बल का कौन खेवनहार है ..... सही बदलते समय के साथ कोई किसी का खेवनहार नहीं है .
जवाब देंहटाएंपॉवर गेम मन की पॉवर को ऊर्जा प्रदान करने में सक्षम है।
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