शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

प्रभाष जी के बिना हिन्दी पत्रक्रारिता अनाथ हो गयी है

प्रभाष जोशी का निधन हिन्दी पत्रकारिता जगत के लिये एक अपूरणीय क्षति है । वे न केवल एक महान पत्रकार थे बल्कि एक महान विचारक भी थे । हिन्दी पत्रकारिता को उन्होने उच्च मूल्य प्रदान किए तथा पत्रकारिता को एक नया मुहावरा भी दिया । नयी भाषा , नए तेवर लेकर जनसत्ता का आगमन उनकी कल्पना का ही परिणाम था । पत्रकारिता के स्कूल नई दुनिया से वे निकले थे और उन पर कई तात्कालिक दिग्गज पत्रकारों की छाप थी । उन्होने पत्रकारिता को राजनीति की रखैल नही बनने दिया , न ही उन्होने संघी मानसिकता के आगे घुटने टेके । वे गहन अध्येता थे , समय की नब्ज को जानने वाले थे । निर्भीक आलोचक थे , कठोर प्रहारक थे । जो चीज उनको नही जमी उसके खिलाफ उन्होने जम कर लिखा चाहे वो नरसिंहराव हों , या अटल जी , या ग्रेग चैपल । क्रिकेट उनका पसंदीदा विषय था उसके मैच वो बाईपास होने के बाद भी जाग-जाग कर देखते थे । क्रिकेट पर उनकी समीक्षा दृष्टि अनुपम थी , एक- एक गेंद का विश्लेषण उनका अत्यन्त गहरा और सटीक होता था । आज जब पत्रक्रारिता एक दलाल की भूमिका में तब्दील होती जा रही है तो राजेन्द्र माथुर , प्रभाष जोशी जैसे मार्ग दर्शकों की जरुरत औऱ भी ज्यादा है क्योंकि उनके बिना हमे ऐसे लगेगा जैसे कोई हमारा सच्चा हितैषी , बुजुर्गवार चला गया । संकटों मे हम जिससे रास्ता पूछने जाते थे । उनके निधन के बाद जनसत्ता पढ़ना की आदत डालने मे बहुत वक्त लगेगा । उनकी स्पष्टवादिता को , साहस को , पत्रकारिक उच्च प्रतिमानों को हमारा विनम्र प्रणाम ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. दुखद. मेरी विनम्र श्रद्धांजलि.

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  2. उनके विचारों को जीवन में अपनायें तो सच्‍ची विनम्र श्रद्धांजलि हम दे पायें।

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