गुरुवार, 12 नवंबर 2009

क्या कभी कोई ऐसी भाषा

उदयप्रकाश ने लिखा
एक भाषा हुआ करती है
भारतेंदु ने भाषा को उन्नति का मूल कहा
राज ठाकरे नहीं मानता कोई भाषा
या वो नही समझता कोई भाषा सभ्य भी हो सकती है
भाषा को ले कर कितना सजग है वो
जैसे इससे ही बचेगा मराठी मानुस
इससे ही रोजगार ,रोटी बचेगी
गन्ना ,कपास का उचित मूल्य इससे ही मिलेगा
मानों भाषा ही पहुँचाएगी हमें सत्ता शीर्ष तक
क्या कोई बची है हमारी भाषा
क्या कोई विचार या दृष्टि बची है
क्या कह सकते हैं ये है हमारी खांटी भाषा
क्या हम उसे ओढ़-बिछा सकते हैं
क्या हम उसमें डूब -उतरा सकते हैं
क्या कल कोई बचेगी ऐसी भाषा पृथ्वी पर
जिसको बोलते नही लड़खड़ाएगी जुबान
खानी नही पड़ेगी सजा
शर्मसार नही होना पड़ेगा
क्या तब भी हम कहेंगे
भाषा हुआ करती है
या कि भाषा बना करती है
और दिलों से दिलों तक मौन सफर करती है


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