शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

घोषणाओं का वसन्त का लोकार्पण संपन्न




साहित्यिक संस्था काव्य-मधुबन के द्वारा अतुल चतुर्वेदी के दूसरे व्यंग्य संग्रह घोषणाओं के वसन्त का लोकार्पण समारोह प्रेस क्लब में संपन्न हुआ । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. नरेन्द्रनाथ चतुर्वेदी ने कहा कि व्यंग्यकार को आत्मश्लाघा से बचना चाहिए । व्यंग्य परिष्कार की विधा है । आज व्यंग्य स्वतंत्र विधा के रूप में स्थापित हो चुकी है । अतुल चतुर्वेदी के व्यंग्यों में व्यंजना का गहरा प्रभाव दिखायी देता है । उनके व्यंग्य समय की नब्ज को पहचानने की ताकत रखते हैं । समारोह की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ. ओंकारनाथ चतुर्वेदी ने कहा कि एक चतुर व्यंग्यकार चतुर नार की तरह मन में घुसता जाता है । अतुल ने अपने लगातार धारदार लेखन से वो मुकाम हासिल कर लिया है जहां से कि उनका रास्ता स्पष्ट दिखायी देता है । उनके लेखन में एक अलग मिजाज और मारक क्षमता है । इससे पूर्व डॉ. उषा झा ने कहा कि रचनाकार को निडर, प्रखर होना चाहिए और वो खूबी हम अतुल चतुर्वेदी में देखते हैं । उनके लेखन में समय को बदलने की ताकत है । व्यंग्यों में आक्रोश के साथ ऊर्जा भी है , वे विसंगति को पकड़ने में माहिर हैं । उनके महामहिम और कीचड़ , टालने की कला , वे आ रहे हैं काफी प्रभावी व्यंग्य हैं । विजय जोशी ने अतुल चतुर्वेदी के व्यंग्यों की सराहना करते हुए कहा कि उनके व्यंग्यों की भाषा काफी ताकतवर है तथा शब्दों की लाक्षणिक एवं व्यंजनात्मक शक्ति से व भरपूर काम लेते हैं । विषय की दृष्टि से उनका फलक काफी विस्तृत है । नए संदर्भों का मुहावरेदार भाषा में अच्छा उपयोग उन्होंने किया है । विशिष्ट अतिथि और नाटककार शिवराम ने कहा कि अतुल का ये व्यंग्य संगह उन्हें काफी आगे ले जाएगा उनमें एक सफल नाटककार के गुण भी हैं । व्यंग्यों की भाषा की उन्होंने भी काफी प्रशंसा की । उनका विचार था कि अतुल के व्यंग्य संकलन के इन व्यंग्यों में मनुष्य को झकझोर देने की अदभुत क्षमता है । कार्यक्रम के प्रारंभ में संस्था के सचिव ने आगुन्तकों का स्वागत किया और कृतिकार का परिचय दिया । समारोह का संचालन प्रसिद्ध वरिष्ठ कवि महेन्द्र नेह ने किया । उन्होंने व्यंग्य विधा के शिल्प पर प्रकाश डाला

1 टिप्पणी: